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Showing posts from July, 2018

Parvati Chalisa

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श्री पार्वती चालीसा Shree Parvati Chalisa ॥ दोहा ॥ जय गिरी तनये दक्षजे शम्भू प्रिये गुणखानि। गणपति जननी पार्वती अम्बे ! शक्ति ! भवानि॥ ॥ चौपाई ॥ ब्रह्मा भेद न तुम्हरे पावे , पंच बदन नित तुमको ध्यावे । षड्मुख कहि न सकत यश तेरो , सहसबदन श्रम करत घनेरो ।। तेरो पार न पावत माता, स्थित रक्षा लय हित सजाता। अधर प्रवाल सदृश अरुणारे , अति कमनीय नयन कजरारे ।। ललित लालट विलेपित केशर कुंकुंम अक्षत शोभा मनोहर। कनक बसन कञ्चुकि सजाये, कटी मेखला दिव्य लहराए ।। कंठ मदार हार की शोभा , जाहि देखि सहजहि मन लोभ। बालारुण अनंत छवि धारी , आभूषण की शोभा प्यारी ।। नाना रत्न जड़ित सिंहासन , तापर राजित हरी चतुरानन। इन्द्रादिक परिवार पूजित , जग मृग नाग यक्ष रव कूजित ।। गिर कैलाश निवासिनी जय जय , कोटिकप्रभा विकासिनी जय जय । त्रिभुवन सकल , कुटुंब तिहारी , अणु -अणु महं तुम्हारी उजियारी।। हैं महेश प्राणेश ! तुम्हारे, त्रिभुवन के जो नित रखवारे । उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब, सुकृत पुरातन उदित भए तब।। बुढा बैल सवारी जिनकी, महिमा का गावे कोउ तिनकी। सदा श्मशान विहरी शंकर, आभूषण हैं भुजंग

Shiva Chalisa

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शिव चालीसा  Shiva Chalisa ॥   दोहा   ॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान । कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥ ॥   चौपाई   ॥ जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के॥ अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देखि नाग मन मोहे ॥ मैना मातु की हवे दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥ देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥ किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥ तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥ आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥ किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥ दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥ वेद माहि महिमा तुम गाई । अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥

Bhagavati Stotram

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श्रीभगवतीस्तोत्रम् Sri Bhagavati Stotram जय भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे । जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे ॥१॥ जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे । जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे ॥२॥ जय महिषविमर्दिनि शुलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे । जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोऽवनते ॥३॥ जय षण्मुखसायुध ईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते जय दुःखदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे ॥४॥ जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दुःखहरे । जय व्याधिविनाशिनि मोक्षकरे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे ॥५॥ एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं यः पठेन्नियतः शुचि । गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा ॥६॥