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Showing posts from August, 2019

Dakshinamurthy Stotram

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दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम् Dakshinamurthy Stotram ध्यानं मौनव्याख्या प्रकटित परब्रह्मतत्त्वं युवानं वर्षिष्ठांते वसद् ऋषिगणैः आवृतं ब्रह्मनिष्ठैः । आचार्येन्द्रं करकलित चिन्मुद्रमानंदमूर्तिं स्वात्मारामं मुदितवदनं दक्षिणामूर्तिमीडे ॥१॥ वटविटपिसमीपेभूमिभागे निषण्णं सकलमुनिजनानां ज्ञानदातारमारात् । त्रिभुवनगुरुमीशं दक्षिणामूर्तिदेवं जननमरणदुःखच्छेद दक्षं नमामि ॥२॥ चित्रं वटतरोर्मूले वृद्धाः शिष्या गुरुर्युवा । गुरोस्तु मौनं व्याख्यानं शिष्यास्तुच्छिन्नसंशयाः ॥३॥ निधये सर्वविद्यानां भिषजे भवरोगिणाम् । गुरवे सर्वलोकानां दक्षिणामूर्तये नमः ॥४॥ ॐ नमः प्रणवार्थाय शुद्धज्ञानैकमूर्तये । निर्मलाय प्रशान्ताय दक्षिणामूर्तये नमः ॥५॥ चिद्घनाय महेशाय वटमूलनिवासिने । सच्चिदानन्दरूपाय दक्षिणामूर्तये नमः ॥६॥ ईश्वरो गुरुरात्मेति मूर्तिभेदविभागिने । व्योमवद् व्याप्तदेहाय दक्षिणामूर्तये नमः ॥७॥ स्तोत्रम् विश्वं दर्पणदृश्यमाननगरीतुल्यं निजान्तर्गतं पश्यन्नात्मनि मायया बहिरिवोद्भूतं यथा निद्रया । यः साक्षात्कुरुते प्रबोधसम

कल्कि अवतार कब होगा ?

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कल्कि अवतार कल्कि अवतार कब होगा ? -- बहुत लोग कहते हैं कि कल्कि अवतार हो चुका है और कुछ लोग कहते हैं आगे बहुत शीघ्र होने वाला है । आजकल अपने को भगवान् का अवतार मानने वाले कई लोग मर चुके हैं , कई अभी जीवित भी हैं ,  किन्तु उन भगवानों में भगवान् तो दूर रहे , भक्तों के लक्षण भी नहीं है । इसीलिए आज जिस विषय को शीर्षक बनाया हूँ , उसपर लिखने से पूर्व थोड़ा भगवान् के लक्षण समझ लेते हैं -- भगवान् के लक्षण विष्णु पुराण के छठें अंश में पराशर जी ने मैत्रेय के प्रति कहा है --- "उत्पत्ति प्रलयं चैव भूतानामगतिं गतिम् । वेत्ति विद्यामविद्या च स वाच्यो भगवानिति ।।" जो प्राणियों की उत्पत्ति तथा विनाश , प्राणियों की गति - अगति - दुर्गति - परमगति आदि को जानता है अर्थात्  कौन जीव कहाँ पर कब कैसे पैदा होगा , जन्म लेकर कैसा कर्म करेगा , सुख पायेगा या दुःख भोगेगा , मरने के बाद किस योनि में जायेगा आदि को जानने वाला भगवान् है । मनुष्य शरीर की प्राप्ति गति , नरक तथा पशु-पक्षी ,  पेड़-पौधे के रूप में जन्म लेना दुर्गति ,  स्वर्ग-ब्रह्मलोकादि सुगति , परमपद की प्राप्ति परमगति अथवा अ

Incarnation of Lord Vishnu according to time

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काल दृष्टि से भगवान् विष्णु के अवतार  काल दृष्टि से भगवान् विष्णु के अवतार --- समय की दृष्टि से भगवान् के पांच प्रकार के अवतार होते हैं -- १. परार्द्धावतार , २. कल्पावतार , ३. मन्वन्तरावतार , ४. युगावतार , ५. अष्टाविंशति युगावतार । १. परार्द्धावतार ----  ब्रह्मा जी के वर्षमान से उनकी १०० वर्ष या १०८ वर्ष की आयु होती है । वर्तमान ब्रह्मा का नाम विरंचि है , इस समय यह ५० वर्ष के हो चुके हैं ।  इनकी आधी आयु को परार्द्ध कहते हैं । "तत्पराख़्यंतदर्द्धपरार्द्धमभिधीयते" और पूरी आयु को पराख्य कहते हैं । इन दोनों परार्द्धों में भगवान् वाराह के दो अवतार हुए । प्रथम परार्द्ध के आदि में ब्रह्मा की उत्पत्ति के अनन्तर नीलवाराह कल्प में ब्रह्मा की नासिका के छिद्र से नीलवाराह का अवतार हुआ , और उनके देखते-ही-देखते पर्वताकार हो गया और हिरण्याक्ष को मारकर पृथ्वी को जल पर स्थापित किया । इन्हीं की ऋषियों ने यज्ञवाराह के रूप में स्तुति की , यह ग्राम शूकर नहीं थे , किन्तु जंगली शूकर थे । यहां कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि विष्णु भगवान् ने सर्वशक्तिमान् होकर भी ऐसी योनियों

Shivashtakam

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शिवाष्टकम् Shivashtakam तस्मै नमः परमकारणकारणाय दीप्तोज्ज्वलज्ज्वलितपिङ्गललोचनाय । नागेन्द्रहारकृतकुण्डलभूषणाय ब्रह्मेन्द्रविष्णुवरदाय नमः शिवाय ॥१॥ श्रीमत्प्रसन्नशशिपन्नगभूषणाय शैलेन्द्रजावदनचुम्बितलोचनाय । कैलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय लोकत्रयार्तिहरणाय नमः शिवाय ॥२॥ पद्मावदातमणिकुण्डलगोवृषाय कृष्णागरुप्रचुरचन्दनचर्चिताय । भस्मानुषक्तविकचोत्पलमल्लिकाय नीलाब्जकण्ठसदृशाय नमः शिवाय ॥३॥ लम्बत्सपिङ्गलजटामुकुटोत्कटाय दंष्ट्राकरालविकटोत्कटभैरवाय । व्याघ्राजिनाम्बरधराय मनोहराय त्रैलोक्यनाथनमिताय नमः शिवाय ॥४॥ दक्षप्रजापतिमहामखनाशनाय क्षिप्रं महात्रिपुरदानवघातनाय । ब्रह्मोर्जितोर्ध्वगकरोटिनिकृन्तनाय योगाय योगनमिताय नमः शिवाय ॥५॥ संसारसृष्टिघटनापरिवर्तनाय रक्षः पिशाचगणसिद्धसमाकुलाय । सिद्धोरगग्रहगणेन्द्रनिषेविताय शार्दूलचर्मवसनाय नमः शिवाय ॥६॥ भस्माङ्गरागकृतरूपमनोहराय सौम्यावदातवनमाश्रितमाश्रिताय । गौरीकटाक्षनयनार्धनिरीक्षनाय गोक्षीरधारधवलाय नमः शिवाय ॥७॥ आदित्यसोमवरुणानिलसेविताय यज्ञाग्निहोत्रवरधूमनिकेतनाय । ऋक्सामवेदमुनिभिः स्तुतिसंयुताय